ईश्वर ने हमें पूरी रोशनी तो नही दी लेकिन वाटरएड ने स्वच्छता की रोशनी से अभिभूत कर दिया
जहां एक ओर स्वच्छता का प्रभाव ग्रामीण परिवेश में काफी आगे बढ़ा है लोगों ने स्वच्छता को अपनी आदत में शामिल किया है स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण की यह बड़ी उपलब्धि है| न सिर्फ शहर अपितु प्रत्येक ग्राम भी ओडीएफ से ओडीएफ प्लस की श्रेणी की तरफ उन्नति की ओर अग्रसर हैं। वही कुछ एक ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं जो सच होने के बावजूद कहानी का स्वरूप प्रतीत होता है जोकि रोचक और सारगर्भित है। भारत के मध्य में छत्तीसगढ़ राज्य स्थित है और उसी राज्य में वनांचल एवं आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र से जुड़ा है बस्तर संभाग और इसी बस्तर संभाग के वजूद को समेटे एक जिला है कांकेर। हम सब जानते हैं कि सुदूर अंचल में बसा घाटियों पहाड़ों एवं वनांचल से घिरा हुआ जिला है कांकेर , जहां भोले - भाले आदिवासी अपने जीवन यापन के लिए रोज कमाते और रोज खाते हैं |
यह सच्ची कहानी जुड़ी है ग्राम पंचायत इच्छापुर से। ग्राम इच्छापुर से लगे 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव है आतुरगांव जो कि अपने स्वच्छता के विभिन्न मापदंडों एवं जल जीवन मिशन के समस्त आयामों से परिपूर्ण है , इसी गांव में विगत वर्ष हुए शौचालय पुनःनिर्माण, अपशिष्ट जल प्रबंधन कार्य एवं वर्षा जल संचयन के कार्य को देखकर ग्राम इच्छापुर के समुदाय द्वारा यह निर्णय लिया गया कि हमारी आदत में शामिल स्वच्छता और वर्तमान परिवेश में मरम्मत की बाट जोहते पुराने शौचालय के लिए क्या कोई ऐसा रास्ता निकाला जा सकता है जिससे कि इन शौचालयों को नवजीवन प्राप्त हो सके एवं हमारी दिनचर्या स्वच्छता के साथ जुड़ी रहे |
इसी संदर्भ में ग्राम बैठक में जुड़े एक-एक परिवार के मुखिया ने बात आगे बढ़ाई क्यों ना हम भी संबंधित संस्था से जुड़कर अपने गांव के लिए कोई बेहतर विकल्प तलाश करें| स्पष्ट कर दूं कि ग्राम पंचायत इच्छापुर, कांकेर जिले से 8 किलोमीटर की दूरी पर बसा एक गांव है जिसमे 130 परिवार निवासरत है इन्हीं परिवारों के बीच बसा एक ऐसा परिवार जहां 9 सदस्य रहते हैं एवं उस परिवार में 7 सदस्य ऐसे हैं जो लगभग 60-70% दृष्टिबाधित हैं, आजीविका के रूप में जीवन यापन करने हेतु खेती किसानी एवं मजदूरी पर आश्रित हैं|
जयलाल तेता एवं जयबती तेता का यह परिवार कठोर जीवन जीने पर मजबूर है| कठिनाइयों ने विकराल रूप धारण तब कर लिया, जब पूर्व के बने शौचालय में मरम्मत की आवश्यकता पड़ी लेकिन परिवार असमर्थ था आर्थिक दृष्टिकोण से, दृष्टिहीन परिवार शौच के लिए बाहर जाने हेतु विवश था। ग्राम पंचायत के अनुमोदन पर चर्चा के दरमियान यह बात निकलकर आई कि जल सेवा चैरिटेबल फाउंडेशन ( वाटरएड इंडिया ) के माध्यम से डिमांड करने पर संस्था शौचालय मरम्मत हेतु सहयोग प्रदान करती है एवं श्रमदान करने वाले परिवारों को निर्माण कार्य में सहयोग करती है।
परिवार ने पंचायत बैठक के माध्यम से हमारी टीम को निवेदन प्रस्तुत किया। जिसके बाद वाटरएड के प्रतिनिधि द्वारा उस परिवार के शौचालय का निरिक्षण किया और शौचालय के पुनः निर्माण कार्य की शुरुआत करी गयी । इस निर्माण कार्य में उपयोगकर्ता परिवार ने श्रमदान के रूप में सहयोग के साथ-साथ कुछ ईट भी प्रदान किये। वाटरएड ने परिवार की दृष्टि सम्बंधित समस्या को देखते हुए शौचालय में रैंप, काला-पीला ग्रिल एवं शौचालय के अंदर उठने-बैठने के लिए एल बार-किल्प बार लगाया है।
परिवार के मुखिया बताते है कि “हमेशा हमारा परिवार एक अनहोनी आशंका से पीड़ित रहता था । उम्र के ढलान पर होने के बावजूद देर रात या फिर यदा-कदा शौच के लिए बाहर जाना जीवन के लिए तकलीफ से भरा हुआ वक्त था | कई बार अनेक तरह की ऐसी विषम परिस्थितियों ने आकर हमे और पूरे परिवार को चिंता में डाल दिया था , कभी- कभी लगता था किसी सदस्य के जीवन की इहलीला ही समाप्त ना हो जाए | लेकिन,आज वर्तमान में परिवार के पास उपयोग करने के लायक शौचालय उपलब्ध है जिसका उपयोग घर के सभी लोग कर रहे है। ईश्वर ने हमें पूरी रोशनी तो नही दी लेकिन “जल सेवा चैरिटेबल फाउंडेशन (वाटरएड इंडिया) ने स्वच्छता की रोशनी से अभिभूत कर दिया है”|
कांकेर के इस घटनाक्रम के बारे में मोहम्मद अज़हर कुरैशी और सुमित कुमार केडिया ने लिखा है जो कि वाटरएड की छत्तीसगढ़ टीम में डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर और रिपोर्टिंग व डॉक्यूमेंटेशन अफसर के पद पर कार्यरत हैं ।