सफाईकर्मियों की अनदेखी दुनिया: वॉटरएड की नई रिपोर्ट जो सफाईकर्मियों के विकट हालात को बयां करती है

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14 November 2019
In
Human rights
Sanitation Workers
Image: WaterAid/ CS Sharada Prasad

भारत में लाखों सफाईकर्मी ऐसे हालात में काम करने के लिए मजबूर हैं जो उनकी सेहत और जिंदगी को खतरे में डालते हैं। यह दावा है इस विषय पर की गई अभी तक की सबसे व्यापक रिपोर्ट का जिसे आज जारी किया गया है।

एक अहम जनसेवा प्रदान करने के बावजूद ये सफाईकर्मी अक्सर समाज के आखिरी छोर पर, अलग-थलग खड़े मिलते हैं, जो अपना काम बिना किसी विशेष औजार, सुरक्षा या कानूनी अधिकार के करते हैं जो कि साफ तौर पर उनकी गरिमा और मानवाधिकार का उल्लंघन है।

यह रिपोर्ट विकासशील दुनिया में सफाईकर्मियों की दुर्दशा बताती अब तक की सबसे व्यापक पड़ताल है। इंटरनेशनल लेबर ऑरगेनाइज़ेशन (ILO), वॉटरएड, वर्ल्ड बैंक और वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइज़ेशन ने सफाई का काम करने वालों की इन अमानवीय हालात के प्रति जागरूकता फैलाने और बदलाव लाने के लिए इस रिपोर्ट को मिलकर तैयार किया है।

सफाईकर्मी, वो पुरुष और औरत हैं जो स्वच्छता की उस लंबी कड़ी में काम करते हैं जो हमारे शौचालय जाने से शुरू होकर अवशेष के निपटान और उसके पुन:प्रयोग पर जाकर खत्म होती है। समाज के इतने अहम काम का हिस्सा होने के बावजूद इन सफाईकर्मियों और इनके काम को अनदेखा और गैर जरूरी समझा जाता रहा है। इनके काम में सिर्फ शौचालय और सार्वजनिक जगहों को साफ करना ही नहीं, अवशेष को अलग-अलग करना, टॉयलेट के गड्ढों और सेप्टिक टैंक को खाली करना, नाले और गटर का रख-रखाव, पंपिंग स्टेशन और ट्रीटमेंट प्लांट का संचालन शामिल है।

2018 में डैलबर्ग एसोसिएट्स 1 के किए गए शोध के मुताबिक भारत के विभिन्न शहरी इलाकों में 50 लाख सफाईकर्मी काम करते हैं। इन्हें स्वच्छता मूल्य श्रंखला में मोटे तौर पर नौ श्रेणियों में बांटा गया है जिसमें नाले की सफाई, लैट्रीन सफाई, मैला ढोना, रेलवे की सफाई, वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट में काम करना, सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय सफाई, स्कूल के शौचालय की सफाई, झाड़ू लगाना तथा घरेलू काम शामिल है।

ये सफाईकर्मी बिना किसी सुरक्षा या औज़ार के काम करने के कारण अक्सर मानव अवशेष या मानव मल से सीधे संपर्क में आते हैं जिसकी वजह से इन्हें सेहत संबंधित खतरे और कई तरह की गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

सेप्टिक टैंक और नाले में मिलने वाली जहरीली गैस जैसे अमोनिया, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डायॉक्साइड की वजह से कर्मचारी बेहोश हो सकते हैं या उनकी मौत भी हो सकती है। अनुमान है कि भारत में हर पांच दिन में तीन सफाईकर्मियों की मौत होती है। अनगिनत सफाईकर्मी लगातार गंभीर चोट, इन्फेक्शन का शिकार होते हैं और इस काम से जुड़े रोजमर्रा के खतरे की वजह से इनका जीवनकाल कम हो जाता है। सफाईकर्मी के परिवार के सदस्यों को भी काम से जुड़ी वर्जना और सदस्य की मौत या सेहत पर पड़ने वाले असर की वजह से संघर्ष का सामना करना पड़ता है।

मीनादेवी, 58, बिहार के देहरी आन सोन में सूखे लैट्रीन साफ करती हैं। उनकी सास की भी यही काम करते हुए मौत हो गई। मीना कहती हैं –

“शुरू में मुझे उलटी जैसा लगता था। मुझे इस काम को करने में शर्म आती थी क्योंकि इसके बारे में लोगों की सोच अच्छी नहीं है। लेकिन अब मुझे ऐसी बदबुओं की आदत है। बात गरीबी की नहीं है, गरीब तो और भी होते हैं, हम तो कमा रहे हैं, लेकिन हमको इतना भेदभाव झेलना पडता है कि बता नही सकते हैं, लेकिन यही रोजी रोटी है तो करना तो पड़ेगा ना ? हमें कोई दूसरा काम दे दो, हम इस काम को तुरंत छोड़ देंगे।”

रमन वीआर, वॉटरएड इंडिया के ‘हेड ऑफ पॉलिसी ‘, कहते हैं -

'सफाईकर्मी समाज के लिए सबसे अहम जनसेवा करते हैं लेकिन इसके बावजूद वह ऐसे हालात में काम करने के लिए मजबूर हैं जिससे उनकी सेहत, जिंदगी और सम्मान सब कुछ खतरे में है। कड़वा सच तो ये है कि आज भी सदियों पुराने जातिवाद का ढांचा ही इन कर्मचारियों की किस्मत को तय करता है। यही वजह है कि भारत में जाति प्रथा के आखिरी स्तर पर खड़े ये समुदाय ही ये काम करने के लिए बाध्य हैं जो न सिर्फ खतरनाक और समाज की नज़र में वर्जित हैं बल्कि इस काम के लिए दी जाने वाली रकम उचित से बहुत कम है। सरकार को अलग अलग स्तर पर नए तरीकों और सहायक तकनीक को काम पर लाना होगा ताकि शहरी और ग्रामीण इलाकों को साफ सुथरा रखा जा सके, और इस काम को करने वाले कर्मचारियों के सम्मान, सुरक्षा, स्वास्थ्य, गरीमा और बराबरी का ख्याल भी रखा जा सके। इस काम को करने वाले सफाईकर्मी और उनके परिवार को तकनीकी विकल्प को अपनाने और उसे संचालित करने में मदद करने से भी इनके जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है।'

विश्व शौचालय दिवस पर इस साल वॉटरएड इंडिया, हर तरह के मल पदार्थ से इंसानों के सीधे संपर्क के खात्मे को लेकर कड़े कदम उठाए जाने की जरूरत की तरफदारी करता है। हमें तकनीक केंद्रित विकल्पों पर काम करने की भी जरूरत है ताकि सफाई संबंधित काम से जुड़े खतरों को कम किया जा सके।

इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए वॉटरएड ने जारी की है –

सफाईकर्मियों की अनदेखी दुनिया – एक संक्षिप्त रिपोर्ट जो भारत, तनज़ानिया, बुरकिना फासो और बांग्लादेश की केस स्टडी की गहराई में उतरकर सफाईकर्मियों के मौजूदा हालात को समझाती है।

भारत में सफाईकर्मियों की अनदेखी दुनिया – एक संक्षिप्त रिपोर्ट जो भारत में सफाईकर्मियों के मौजूदा हालात को दिखाती है।

सफाईकर्मियों की सेहत, सुरक्षा और सम्मान – विकासशील देशों में सफाईकर्मियों के हालात की व्यापक पड़ताल। इसे इंटरनेशनल लेबर ऑरगेनाइज़ेशन, वॉटरएड, वर्ल्ड बैंक और वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइज़ेशन ने मिलकर तैयार किया है।

[1]Dalberg Associates. The Sanitation Workers Project.  

और अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें –

प्रज्ञा गुप्ता, +91-8130260865 या [email protected]